Friday, August 5, 2011

जब जब मैं इन हाथ की रेखाओं को देखता हूँ...

जब जब मैं इन हाथ की रेखाओं को देखता हूँ
इनमे तुम्हारा चेहरा नजर आता है
आड़ी तिरछी रेखाओं से एक सूरत बन सी जाती है
ये सूरत मुझको मेरे सपनो में भी आती है

लोग अक्सर तलाशते हैं तकदीर हाथ की रेखाओं मैं
मैं तो अपनी तकदीर यानी तुम्हे ही देखता हूँ बस
मुझे भी यकीन है रेखाओं में छुपी होती है takdeer
इससलिए बस इन्हें ही निहारता हूँ........बस इन्हें ही निहारता हूँ.....:)

सचिन जैन

1 comment:

  1. हे तक़दीर बनाने वाले ,
    तेरे रहम के हम शुक्रगुजार रहेगे
    जिसने ऐसा साथी दिया है
    जिसे हम मरते दम तक प्यार करेंगे........
    तस्वीर बस एक ही दिखती है....
    इन हाथ की लकीरों में,
    ऐसा प्यारा मासूम सा साथी ,
    मिलता जन्मों जन्मों के नसीबो से......
    दोनों हाथों को जब मैं मिलाती हूँ
    एक चाँद नज़र आता है,
    जो आपकी याद दिला जाता है,
    उस याद के सहारे हम दिन गुजार देती है,
    और रात को सपनो में आपको बुला लेते है...;)

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